इंसानों की एनाटोमी बदल गयी है या डॉक्टरों कि नियत?
मेरे बचपन का संन १९५० – १९६० के डाक्टरों का अनुभव: -
डाक्टर और दवा तो हरेक के जीवन का अभिन्न रहा है और है और रहेगा| कोई जमाना था की यदि कोई डाक्टर के पास जाता था तो डाक्टर कहते थे कि “इसमें क्या होगया? ऐसी छोटी छोटी बात के लिए तुम्हे दवा क्यों चाहिए? ये तो वैसे ही ठीक हो जायेगा" ये तो बहुत ही मामूली बात है, क्या डरते हो? इस प्रकार से डाक्टर लोगों को हिम्मत देते थे, दवाओं से दूर रखते थे| सिर्फ नाडी परीक्षा और आलते (स्टेथेस्कोप) से या थोडा बदन पर हाथ से फील करके पता करलेते थे की क्या करना है | यदि मरीज इंजेक्सन के लिए आग्रह करता था तो उसे मरीज के हक में नकार दिया जाता था|
महिलाओं के डिलीवरी केसेस के लिए सर्वप्रथम नाइ की औरत / नायन को बुलाया जाता था ८५% डिलीवरी वो आराम से करवाती थी| यदि उसे कुछ मदद की जरूरत होती थी तो दूसरे नंबर पर "दायन" (नर्स की अस्सिटैंट) को बुलाया जाता था और ५% केस निपटाती थी| यदि दायन को मदद की जरूरत पड़ती थी तो तीसरे नंबर पर नर्स आती थी और ५% केस वो निपटाती थी| यदि कोई ऐसा ही केस हो जो नर्स न निपटा सके तो फिर ५% केसेस डॉक्टर को जोकि LCPS या RMP / LMP होते थे वो निपटाते थे| MBBS बड़े डॉक्टर्स माने जाते थे और वे शहर के बड़े बड़े दवाखानों में ही हुवा करते थे| दुर्भाग्य की बात तो ये है की आज की गाइनोकोलॉजिस्ट सर्जन इस काबिल भी ना रही की वो नायन, दायन और नर्स वाला काम भी ठीक से निपटा सके|
ब्लड प्रेसर यदि यन्त्र से नापा जाय तो पुरे गाँव में चर्चा होता था की उसे तो मशीन लगा कर देखा है भाई, बीमारी बड़ी दिखती है ! आज ब्लड प्रेसर यन्त्र लगाना ही नहीं बल्कि कर्डिओग्राम, इको-कार्डियोग्राम और एंजियोग्राफी ही करलेना एक सामान्य बात बनादीगई है| आज मरीज यदि हिम्मत दिखाए कि साहब मुझे इतनी तकलीफ नहीं है तो डाक्टर कहते हैं कभी भी ये तकलीफ आप को हो ही जायेगी| इन सुवचनो से डाक्टर मरीज की हिम्मत और आत्मविश्वास को चकना-चूर करदेता है क्योंकि आज के डाक्टर को सिर्फ पैसा चाहिए|
सारे जानवरों की एनाटोमी तो वो की वो ही रही जैसा की मैंने देखा है मेरी ७४ साल की उम्र तक| तो क्या सिर्फ इंसानों की एनाटोमी बदल गयी है या डॉक्टरों कि नियत| किसी जानवर के सिजेरियन से बच्चे होते नहीं सुना न देखा| सम्भोग व प्रजनन तो एक सामान्य प्राकृतिक क्रिया है सिर्फ महिलाओं कि एनाटोमी में ऐसा क्या बदलाव हो गया है जो कि अब किसी महिला के बच्चा सिजेरियन के बिना पैदा नहीं होता?
कुत्तियां ६ से ९ पिल्लै मस्ती से देती हैं, मादा सुवर १२ बच्चे मस्ती से देती है और चौपायों के बड़े बड़े बच्चे पैदा होते हैं सब बिना ऑपरेशन के वाह भाई वाह प्रकृति ने उनको तो जैसा थे वैसे ही रखे और सिर्फ आदमियों और औरतों कि एनाटोमी ऐसी बदल डाली कि जो अब कोई भी प्राकृतिक क्रिया बिना डॉक्टर्स कि मदद के ना हो सके|
हर नार्मल व्यक्ति के कार्डियोग्राम में पार्शियल RBBB यानि की पार्शियल राइट बंडल ब्रांच ब्लॉक आत्ता ही है और इसके लिए कोई दवा लेने की जरूरत नहीं होती| परन्तु डॉक्टर्स उसे ढेर सारी दवाई दे देते हैं और एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के खर्चे में अवश्य उतार देते हैं| व्यक्ति जोकि मरीज ही नहीं नहिं उसे अच्छा खासा मरीज बना देते है| ये व्यक्ति आजीवन दिलके दौरे के डर में जीता है और उसके परिवारजन, रिस्तेदार और दोस्त लोग भी चिंतातुर रहते है| क्या ये समाज के भले की बात है|
मेरे पिताजी का अवसान हार्ट फेल से हुआ था | उस ज़माने में अटेक नाम की चिडया थी ही नहीं
कुछ दिनों पहले मेरे फेमली डाक्टर ने मुझे इको-कार्डियोग्राम के लिए सलाह दी| जब में एक बड़े अस्पताल में गया तो वहां का डाक्टर बोला " देखिये साहब इको कार्डियोग्राम में खराबी निकलेगी तो एन्जिओग्राफी तो करनी ही पड़ेगी, तो पहले से ही एंजिओग्राफी क्यों ना कर दी जाय? मैं भोंचाक्का सा रह गया और बोला जी मैं मेरे फेमली डाक्टर से पूछ लेता हूँ और फिर आगे बढ़ते हैं| मेरा फेमली डाक्टर बोला भाई साहब अच्छा हो गया आप वापस आगये वर्ना वो आप को अन्जियो-ग्राफी के टेबल पर आप को सुलाने के बाद आप की पत्नी के हस्ताक्षर लेलेता कि यदि अन्जियो-ग्राफी में कुछ खराबी हो तो एनजीओ-प्लास्टी करदी जाय| मैं वापस लौटा इश्वर को धन्यवाद देता हुआ || "जान बची और लाखो पाए"|
इस ज़माने में भी कुछ अछे डाक्टर्स ऐसे हैं जो नीतिपूर्ण काम करते हैं और भगवान् से डरते हैं | मैं एक ऐसे डाक्टर को भी जानता हूँ की जिसने एक लेख लिखा था " Be Away From 3 D's"
viz Diseases, Doctors and Drugs. These are three Devils.
डाक्टरों की कंसल्टेशन फ़ीस इतनी बढ़ गयी है की वो दिन-दहाड़े की लूट जैसी लगती है || मुझे एक डाक्टर से कहना पड़ा था की " मैं बीमारी से मरना पसंद करूँगा गरीबी और भुकमरी से नहीं| भगवन भला करे सबका ||| टिप्पणी अवश्य दे |||
ठाकोर जोशी
८४० शब्द