Monday, November 21, 2016

निबंध ज्ञानी और बुद्धिमान का अंतर

निबंध ज्ञानी और बुद्धिमान का अंतर

जन्मसे ही कोई ज्ञानी या बुद्धिमान नहीं होता| नवजात शिशु का दिमाग बिलकुल साफ़ सुथरी स्लेट के जैसा होता है| समय के साथ साथ जो भी वो देखता है, सुनता है या अनुभव करता है वो सब उसके दिमाग में अंकित होता रहता है और शिशु उसकी नयी दुनिया, वातावरण एवम लोगों को समझने की कोशिश करने लगता है और समझने लगता है| शिशु उसकी समझ के अनुसार कुछ कुछ  करने का प्रयत्न करने लगता है | पांच साल की  उम्र तक की उसकी समझ आजीवन पक्की सी रहती है| वैसे जन्म हो जाने से कोई बुद्धिमान या ज्ञानी नहीं बन जाता|

विद्यार्थी जीवन में आने से व्यक्ति स्कूल एवम कॉलेज तथा प्रोफेशनल कॉलेज में जा कर क्रमश: प्राथमिक. माध्यमिक, उच्च एवम उच्चतम शिक्षा एवम ज्ञान प्राप्त कर लेता है| इस ज्ञान में मात्र जानकारी का समावेश होता है| समय के साथ व्यक्ति इस जानकारी से उपयोगी कार्य करने लगता है| और इस कार्य के मार्ग में जो असफलताएं एवम बाधाएं आती हैं और उन्हें पर करके सफलता प्राप्त करलेना व्यक्ति की बुद्धि में अभिवृद्धि करती हैं|


जन्म और आयु बुद्धिमान होने का प्रमाणपत्र नहीं देते| कोई बुजुर्ग हो जाता है पर बुद्धिहीन रहता है और कोई कम उम्र में ही बुद्धिमान बन जाता है| बुद्धिमान व्यक्ति अपने कठोर परिश्रम एवम प्रयास से बनता है| बुद्धिमता में ज्ञान + सामान्य ज्ञान + अनुभव + विचारशीलता + समझ + कार्यकुशलता इत्यादि का समावेश होता है| और इन सब को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास एवम कठोर परिश्रम की आवश्यकता होती है| उदाहरणस्वरूप चाणक्य निरंतर प्रयास एवम कठोर परिश्रम के पश्चात एक विश्व-विख्यात एवम महान ज्ञानी हुवे|

सारांश में बुद्धि सिखाई या पढाई नहीं जाती| पढ़ाया लिखाया सिर्फ ज्ञान  होता है| इस ज्ञान का उपयोग करने के मार्ग में जो बाधाएं आती हैं उन्हें निरंतर कठोर परिश्रम एवम प्रयास से पार करके सफलता प्राप्त करने की कला ही बुद्धिमानी है|  

(शब्द – 315)


Thank you very much. Please do visit and subscribe my following Blogs: -



1 comment: