उदाहरणस्वरूप बच्चे बिलकुल निर्भय होते हैं अतः उनके सपने भी बड़े बड़े होते हैं| वे असफलता एवम कठिनाईयों से डरते नहीं और अपना कार्य करते रहते हैं अतः खूब प्रगति कर पाते हैं| परंतु जब वे बड़े होते हैं तब उन्हें चुनोतियों एवम अस्वीकृतियों का सामना करना पड़ता है| इस कारणवश वे कमजोरियों और सीमाओं को स्वीकार कर लेते हैं तथा उनकी प्रगति निराशाजनक हो जाती है और उन्हें असफलताओं का सामना करना पड़ता है|
दूसरी और ऐसे भी साहसी लोग होते हैं जो कि असंख्य कठिनाईयों, समसयाओं एवम असफलताओं का निर्भयता से सामना करते हुवे सफलता पाते है एवम जीवन को उच्चतम सफलताओं के शिखर पर पहुचादेते हैं| उदाहरणस्वरूप साहसी लोग अंतरिक्ष की भी यात्रा करते है और चाँद और मंगल ग्रहों तक भी पहुँच जाते हैं|
मानव जीवन न तो फूलों की सेज हैं और न ही काँटों की शय्या| जीवन तो कठिनाईयों और सरलताओं का तथा असफलता और सफलताओं का मिश्रण है| व्यक्ति को निर्भयता से कार्य करना चाहीये और अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहीये| “भय सफलता और प्रगति का महान शत्रु है” अतः भय से सदैव दूर रहें और कभी भी भय को समीप न आने दे| बस कर्म करते रहें फल की चिंता न करें कठोर परिश्रम तथा कर्म का फल तो सदैव अच्छा ही मिलेगा| इस बात की पुष्टि तो श्रीमद भगवद गीता भी करती है|
सारांश में स्वयं का जीवन कैसा बनाना या न बनाना, परिश्रम करना या न करना, या जो है जैसा है उसे ही स्वीकार कर के आलसी बन कर आराम से बैठे रहना ये व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है| इस बात को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए की मानव जीवन बार बार नहीं सिर्फ एक ही बार मिलता है, तो क्यों न कड़ी मेहनत कर के अपने स्वप्नों को साकार कर लिया जाय और जीवन को सफलताओं के उच्चतम शिखर पर पहुँचाया जाय|
(शब्द
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