Thursday, December 29, 2016

निबंध डेटिंग के लिए सही उम्र


इस युग के बच्चो की पीढ़ी में देखा गया है कि लड़के एवम लड़कियां बहुत ही शीघ्र यानी कि सात से नो वर्ष की आयु में ही जवानी में कदम रखने लगे है| इतना ही नहीं वे वयस्कता के समस्त अनुभव भी स्वयं कर लेना चाहते हैं| इस बदलाव का मुख्य कारण ये है कि पिछली शताब्दी में तो किशोरावस्था 12 से 19 हुवा करती थी जब कि आज कल 7- 9  वर्ष कि आयु में ही कई कई शारीरिक बदलाव आते है| जैसे कि  बगल और गुप्त अंग के आस पास में बालों का उग आना, स्थनो और गुप्तांगो का वकसित हो कर बड़ा आकार बन जाना, लड़कों के चेहरों पे दाढ़ी मूंछ का आना और लड़कियों को मासिक धर्मं का शुरू होना इत्यादि| किशोर किशोरिओं में ये सारे हार्मोनल बदलाव काफी उलझने पैदा कर देते हैं और उनका वर्ताव काफी कुछ विचित्र सा हो जाता है| इस अवस्था के किशोर किशोरि अपने निर्णय खुद लेना चाहते हैं, अपने दोस्तों के बारे में इत्यादि| इसी समय में किशोर किशोरिओं की सेक्स में रूचि भी जन्म लेती है और बढ़ने लगती है| ये अवस्था अत्यन्त नाजुक होती हैलड़के एवम लड़कियां डेटिंग करने लगते हैं| कई बार तो बच्चे समय से पूर्व सम्भोग भी कर बैठते है और लडकियां गर्भवती हो जाती हैं जो कि असामाजिक है| इनके परिणाम भयंकर होते हैं| यह परिस्थिति माता पिता के लिए एक गहन चिंता एवम समस्या के रूप में आकर खड़ी हो जाती है| माता पिता का फर्ज है कि  इस अवस्था में बालकों को भला बुरा कहने के बजाय उन्हें प्यार से दुलार से सही सही जानकारी से अवगत करें अन्यथा बच्चे झूठ बोलने को प्रेरित होंगे| बालकों को सिर्फ भाषण ना दे, उनको उनके गलत व्यवहार से होने वाले भयंकर परिणामों से अवगत करें|

डेटिंग प्रेरित होने का दूसरा कारण है टीवी, सिनिमा और इन्टरनेट| बच्चे टीवी और इन्टरनेट पर एडल्ट कंटेंट देखने लगते हैं और वैसा करने में प्रेरित होते हैं| तीसरे स्थान पर फ़ैशन परस्ती आती है जहां लडकियां एकदम चुस्त तथा छोटे कपडे पहनती हैं इससे अंगप्रदर्शन होता है जो कि लड़कों में सेक्स की इच्छा को तीव्र गतिमान बनाता है|

इसके अलावा एक कारण ये भी है की आज कल के नाव विवाहित माता पिता अपनी वैवाहिक जिंदगी का आनंद उठाने में और वक़्त की आपा-थापी में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें बच्चो के लिए समय ही नहीं मिलता| ये एक अत्यंत दुखपूर्ण स्थिति होती है जिसमे कि बच्चे माता पिता के ध्यान और प्यार के आभाव में डेटिंग में प्रेरित होते हैं| माता पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों के लिए समय निकाले, उनके साथ खेलें कूदें मनोरंजन करें और सही शिक्षा दें|

सारांश में इन सारे पहलुओं को देखते हुवे माता पिता बच्चो को सामूहिक डेटिंग के लिए आज्ञा दे सकते हैं| इससे शारीरिक संबंधों के खतरे टल सकते है| वैसे तो डेटिंग के लिए कोई उम्र तय नहीं की जा सकती परन्तु हायर सेकेंडरी स्कूल के बाद जब लड़के लडकियां १८ साल के  हो जाय तब कॉलेज जाने के बाद ही डेटिंग के लिए आज्ञा प्रदान की जा सकती है|
(शब्द 515)


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Saturday, December 24, 2016

निबंध वेशभूषा एवम व्यक्तित्व की प्रस्तुती


निबंध वेशभूषा एवम व्यक्तित्व की प्रस्तुती
वेशभूषा का व्यक्ति के व्यक्तित्व, स्वाभाव एवम कार्य कुशलता पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है| हम जिन वस्त्रों में कार्यालय में जाते हैं उन्हें घर में सोते वक़्त बदल देते हैं| यदिं उन्ही घरेलु वस्त्रों में हम कार्यालय में जाए तो हम ठीक से कार्य नहीं कर पाएंगे क्योंकि हमारा मन (मूड) ही नहीं बनेगा| तथा जो  ग्राहक या अधिकारीगण  हमसे कार्यालय में मिलने आएंगे उनपर भी हमारा दुष्प्रभवावः पड़ेगा और हमे व्यपार धंधे में नुक्सान होगा| इसी कारण से पुलिस और आर्मी तथा वायु सेना, समुद्री सेना इत्यादि में यूनिफार्म आवश्यक होती है| यहांतक की स्कूलों में भी यूनिफार्म आवश्यक होती है| यूनिफार्म या उपयुक्त वेशभूषा एक अनुशाशन एवम एक अनुशाषित व्यक्ति का प्रतीक है|
पुराने समय के बनिस्पत आज कल अधिकांश लोग अपने पहनावे और व्यक्तित्व को अत्यधिक महत्त्व देने लगे हैं| इसका मूल कारण ये है कि Globalization और कम्प्यूटराइजेशन के कारण हर क्षेत्र में कार्य अत्यधिक गतिमान होगया है| दूसरे हर व्यापार / धंधे में भी प्रतियोगिता इतनी बढ़ गयी है जिसकी कि कोई सीमा ही नहीं है| नए युग के इस वातावरण में गुजारा कर पाने के लिए ये अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने आप को कितना प्रभावशाली रूप से प्रकट कर पाते हैं|
पहली मुलाकात में व्यक्ति जो प्रभाव डाल पाता है वो ही उसका प्रथम प्रभाव (First Impression) होता है| प्रथम प्रभाव हर मार्ग और कार्य में बहुत ही महत्वपूर्ण होता है| अतः इस का ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रसंग एवम व्यक्ति जिससे कि हम मिलने वाले हैं हमारी वेशभूषा प्रसंग के अनुसार होनी चाहिए एवम हमारा व्यक्तित्व प्रभावशाली होना चाहिए| उदहारण-स्वरूप जिन वस्त्रों में हम शादी के प्रसंग में सम्मिलित होते हैं उन्ही वस्त्रों में हम किसी स्मशान यात्रा में सम्मिलित नहीं हो सकते|
सारांश में कहने का तात्पर्य इतना ही है कि प्रस्तुती की कला एक बहुत ही महत्वपूर्ण कला है जिसमे की सभी को निपुण होना आवश्यक है| जो लोग इस कला में माहिर हैं वो इसयुग में हर क्षेत्र में पनप जाते है और जो लोग इस कला को नहीं सीखते या ध्यान नहीं देते वे पिछड़ जाते हैं|  

(शब्द 348)
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Wednesday, December 21, 2016

निबंध उन्नति प्रत्येक के साहस के अनुसार अधिक या कम होती है




जीवन में हरेक व्यक्ति अधिक से अधिक प्रगति कर के सफलता के उच्चतम स्थान पर पहुँच जाना चाहता है| परंतु उन्नति या प्रगति प्रत्येक को उसकी हिम्मत  या साहस के अनुसार ही मिलती है| जो निर्भय होते है उनकी उन्नति की कोई सीमा नहीं होती वे जो चाहे प्राप्त कर लेते हैं जैसे कि साहसी लोग चाँद पर भी पहुँच जाते हैं| परंतु जो भयभीत रहते हैं वो कार्य प्रारम्भ तो करते हैं पर मार्ग  में  जो कठिनाईयां और समस्याएं आती हैं उनका सामना नहीं कर पाते हैं और वापस लौट आते हैं और उन्नति नहीं कर पाते|

उदाहरणस्वरूप बच्चे बिलकुल निर्भय होते हैं अतः उनके सपने भी बड़े बड़े होते हैं| वे असफलता एवम कठिनाईयों से डरते नहीं और अपना कार्य करते रहते हैं अतः खूब प्रगति कर पाते हैं| परंतु जब वे बड़े होते हैं तब उन्हें चुनोतियों एवम अस्वीकृतियों का सामना करना पड़ता है| इस कारणवश वे कमजोरियों और सीमाओं को स्वीकार कर लेते हैं तथा उनकी प्रगति निराशाजनक हो जाती है और उन्हें असफलताओं का सामना करना पड़ता है|
दूसरी और ऐसे भी साहसी लोग होते हैं जो कि असंख्य कठिनाईयों, समसयाओं एवम असफलताओं का निर्भयता से सामना करते हुवे सफलता पाते है एवम जीवन को उच्चतम सफलताओं के शिखर पर पहुचादेते हैं| उदाहरणस्वरूप साहसी लोग अंतरिक्ष की भी यात्रा करते है और चाँद और मंगल ग्रहों तक भी पहुँच जाते  हैं|
मानव जीवन तो फूलों की सेज हैं और ही काँटों की शय्या| जीवन तो कठिनाईयों और सरलताओं का तथा असफलता और सफलताओं का मिश्रण है| व्यक्ति को निर्भयता से कार्य करना चाहीये और अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहीये| “भय सफलता और प्रगति का महान शत्रु हैअतः भय से सदैव दूर रहें और कभी भी भय को समीप आने दे| बस कर्म करते रहें फल की चिंता करें कठोर परिश्रम तथा कर्म का फल तो सदैव अच्छा ही मिलेगा| इस बात की पुष्टि तो श्रीमद भगवद गीता भी करती है|
सारांश में स्वयं का जीवन कैसा बनाना या बनाना, परिश्रम करना या करना, या जो है जैसा है उसे ही स्वीकार कर के आलसी बन कर आराम से बैठे रहना ये व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है| इस बात को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए की मानव जीवन बार बार नहीं सिर्फ एक ही बार मिलता है, तो क्यों कड़ी मेहनत कर के अपने स्वप्नों को साकार कर लिया जाय और जीवन को सफलताओं के उच्चतम शिखर पर पहुँचाया जाय|
(शब्द 404)
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