Friday, February 19, 2016

हमे गर्व अपनी भाषा पर हिन्दी ही अपनाएगे||

हिन्दी साप्ताह पर एक स्वरचित रचना: -

हिन्दुस्तान हे देश ह्मारा हिन्दी हमारी भाषा है|
हमे गर्व अपनी भाषा पर हिन्दी ही अपनाएगे||



बिन प्रयास फल प्राप्त नही होता|
स्कूल मे बालक पास नही होता||

ठेले वाला एक पाई नही पाता|
मिल मलिक भी तालाबंदी ही पाता||

प्रारंभिक कठिनाइयों से हम नही डरेंगे नही डरेंगे ||
हिन्दी मे ही काम करेंगे हिन्दी मे ही काम करेंगे||


ठाकोर जोशी

Friday, February 12, 2016

मैने सिगरेट कैसे छोडी

मैने सिगरेट कैसे छोडी

मैं सिगरेट का आदि था ओर एक दिन मे तीस सिगरेट पीता था| तकरबिन 40 साल पुरानी मेरी ये आदत थी| मेरी पत्नी ओर बेटा बेटियाँ सभी को नेरी इस आदत से परेशानी थी ओर वो सभी मुझे इस व्यसन को छोड़ने का आग्रह करते थे परुन्तु मैं एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देता था|यहाँ तक की मेरी पत्नी को तो सिगरेट के धुवे से एलर्जी थी ओर कभी कभी उनकी दमे की बीमारी के कारण सांस भी उखड़ जाती थी ओर मेरे एक प्यारे से पालतू पिल्ले को भी छिन्के आने लगती थी| मैं सब समझता तो था पर अपने आप को आदत से मजबूर पाता था| बेटिओं की शादी के बाद उनके सुसराल वालों को यानी हमारे समधियों को भी हमारा सिगरेट पीना पसंद नहीं था

एक समय ऐसा आया की सरकार ने सभी मेट्रो सिटीज़ मे एवम् सार्वजनिक स्थानों मे सिगरेट पे रोक लगा दी| इस का असर मेरे दिल ओर दिमाग़ पर इतना गहरा पड़ा की मैने आत्म-विस्लेशन किया कि मैं क्यूँ सिगरेट पिता हूँ ओर मैं क्यूँ नही छोड़ सकता| नीम्न लिखित ब्योरा पढ़े: -

मैं सिगरेट पिता हूँ  क्यूंकी: -

·          काम का बोझ है पूरा नहीं हो रहा है इसलिए|
·          अरे काम पूरा हो गया इसलिए||
·          तरक्की नहीं मिल रही इसलिए|
·          प्रमोशन हो गया इसलिए||
·          बेटा पढ़ाई मे कमजोर है इसलिए|
·          बेटा पास हो गया इसलिए||
·          बेटी को मंगल है ओर शादी नही हो रही इसलिए|
·          अरे लड़के वाले बेटी की शादी को सहमत हो गये इसलिए||

अंतर्मन प्रसन्नोत्तर: -

1.        क्या मेरे एक दो दिन काम नही करने से दुनियाँ बंद हो जाएगी? उत्तर  नहीं
2.        क्या सिगरेट पीने से प्रॉमोसन मिलता है? उत्तर  नहीं
3.        क्या सिगरेट नही पीने से दिमोसन हो जाता है? उत्तर  नहीं
4.        क्या मेरा बेटा मेरी पत्नी, मा ओर मेरी बेटिओं का सगा नहीं है? उत्तर  है|
5.        जब मैं सिगरेट पिता हूँ तब क्या मैं मेरी मा, मेरी बेटिओं को ओर मेरी पत्नी को सिगरेट ऑफर करता हूँ? उत्तर  नही
6.        जब कभी मैं मिठाई ओर आइस्क्रीम लाता हूँ तो क्या मैं अकेला कोने मे बैठ कर ख़ाता हूँ? उत्तर  नहीं| तो फिर मैं सिगरेट अकेला अकेला क्यूँ पिता हूँ? ओर यदि मुझमे इन सब को सिगरेट ऑफर करने की हिम्मत या ओकात नहीं है तो क्या न्याय है की मैं सिगरेट पियूं?

7.        सभी डॉक्टर्स कहते हैं की सिगरेट कोई शारीरिक ज़रूरत नहीं है ये मात्र एक मानसिकता है| ओर यदि कोई सिगरेट छोड़ देता है तो वहीं से शारीरिक नुकसान होना बंद हो जाता है ओर मात्र 3 दिन बाद उसे सिगरेट भाएगी नहीं ओर 15 दिन मे तो व्यक्ति ऐसा हो जाएगा मानो उसने सिगरेट कभी पी ही नहीं| इन सब बातो का मनोमंथन करने के बाद मैने पक्का निर्णय किया कि मैं सिगरेट छोड़ दूँगा|

मैने कैसे ओर क्या क्या किया: -

·          11 जनवरी 98 मैने पत्नी को बोला आज मेरा सिगरेट का लास्ट दिन है! कल मैं सिगरेट नही पियुंगा ! एक कोने मे पड़ा रहूँगा ! ब्रश नही करूँगा ! शेव नही करूँगा ओर ना ही बाथ लूँगा ! हो सकता है मैं चिड़चिड़ा वार्ताव करूँ पर मैं सिगरेट नहीं पियुंगा ! पत्नी जी ने अग्री किया!
·          12 जनवरी 1998 की छुट्टी थी मैं सुबह उठ कर हाथ-मुँह धोया, ब्रश किया, नाहया| इन सब कार्यों के दरम्यान जब जब मुझे सिगरेट याद आई मैं लेट जाता था| इसी तरह से मैने शाम तक का समय गुजर दिया! मैने जबरदस्त प्रेरणा का अनुभव किया कि मैं हर 30 मिनिट मे एक सिगरेट पीनेवाला बिना किसी भी तरह की कठिनाई के सुबह से शाम तक बिना सिगरेट के अच्छे तरह रह सका| रात के भोजन के बाद भली भाँति रात को सो सका|
·          13 जनवरी 1998 सुबह उठकर दिनचर्या से निपट कर मैं ओफिस गया| सब काम भलीभाँति किया| साथी लोगों ने सिगरेट ऑफर की तो मैंने कहा "आज मैं एक धार्मिक कारण से नही पियुंगा" | धार्मिक कारण मैने इसलिए बताया की धार्मिक कारण पे कोई आपको आग्रह नही करेगा|शाम को बड़े ही उत्साह पूर्वक मैं घर लौटा| रात को आराम से सोया|
·          14 जनवरी 1998 मकर संक्रांति / उतराण की छुट्टी थी | ओफिस जाना नहीं है, काम का कोई टेंसन नही है बस सिगरेट पीना नही है ओर पान बीड़ी सिगरेट के गल्लो पे जाना नहीं है| तथा उन लोगो से मिलना नहीं है जो सिगरेट ऑफर करे| पूरा दिन हमने त्योहार मस्ती से बिना सिगरेट मना लिया | फिर क्या था हमारी सिगरेट की लत तो पुरानी बात हो गयी|
13 फ़रवरी 2016 को आज मुझे सिगरेट छोड़े 18 साल हो गये हैं ओर मैने कोई भी इसके एवज़ मैं आदत डाली नहीं है जैसे की सौंफ, सुपारी, पान, पॅडीकी इत्यादि | क्यूंकी ये सब भी स्वास्थ्य की लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं|

सिगरेट छोड़ने से मुझे क्या लाभ हुवे: -

1.        आत्मविश्वास बढ़ गया|
2.        सब मुझसे खुश हैं|
3.        दाँत का कलर सुधर गया|
4.        मूह का स्वाद सुधर गया|
5.        सब व्यंजन स्वाद वाले लगते हैं|
6.        समय का दुरव्येय नही होता|
7.        धन का दुरव्येय नही होता|

क्या नुकसान होते है तंबाकू से: -

1.        चेहरे पे झुर्रियाँ आ जाती है ओर बुढ़ापा दिखने लगता है|
2.        दाँत बिगड़ जाते है ओर गिर भी सकते है|
3.        मूह का, गले का, फ़्रेफ़डों का केंसर हो जाता है जो की जानलेवा है|

यही तरीका है आप भी अपनालो ! 3 दिन कोने मे पड़े रहो कुछ मत करो पर सिगरेट मत पियो या तमाकू का सेवन मत करो ओर जो आप को आग्रह करे उनसे दूर रहो ओर जहाँ ये सब मिलता है उन दुकानो ओर गाल्लों पर मत जाओ देखना 3 दिन मे आपकी बीड़ी, सिगरेट, तमाकू, गुतका, वगेरा छूट जाएगा|



आपके इस प्रयास मे कोई दिक्कत हो तो खुशी खुशी प्रश्ना पुच्छे मुझे आनंद होगा !



Thursday, February 11, 2016

परिवर्तन ही संसार का नियम है

  • समय बदल गया है|
  • जब मैं छोटा था दुनियाँ बहुत बड़ी दिखती थी|
  • स्कूल घर से पास था ओर रोज मैं पैदल जाता था| चन्द दोस्तों के साथ|
  • साइकल सिर्फ़ बड़े घर के ओर बड़े लड़कों के पास हुवा करती थी|
  • आधी छ्टी मे कभी गोले वाले से शक्कर के लाल पीले गोले खाते थे| गोली वाले से नारंगी की फाँक जैसी गोलियाँ खरीद के खाते थे ओर चूरन वाले से चूरन की गोलियाँ वाह क्या मज़ा आता था | तब तक घंटी बाज जाती थी ओर हम क्लास मे फिरसे आजाते थे|
  • गर्मी के दिनो मे तो आधी छुट्टी कम पड़ जाती थी क्यूंकी बरफ के गोले, मनपसंद रंग के बनवाने होते थे ओर कुलफी वाले से मनपसंद आकार की कुलफियाँ खानी होती थी! ओर ये सब मज़ा सिर्फ़ चार आने की जेब खर्ची के अंदर अंदर से पूरा पड़ता था ओर कुछ पैसा बचता था जो दूसरे दिन की जेब खर्ची मे जुड़ जाता था| वाह क्या दिन थे यार| जाने कहाँ गये वो दिन?
  • आए दिन अलग अलग दोस्तों की सालगिरह पड़ती थी ओर वो टी पार्टी के मध्यम से मनाई जाती थी सब दोस्त मिल कर दाल-सेव, बिस्कुट नानकताई ओर क्रीमरोल उड़ाते थे ओर गाने गाते थे न तो कोई रोक टोक होती थी ओर ना ही कोई ओपचारिकता| सिर्फ़ आज़ादी ही आज़ादी| काफूर हो गयी ये सब बाते वक़्त के साथ अब तो बस याद ही याद है गुज़रे वक़्त की खूबसूरतीयों की!
  • हमारे गाँव मे सिनेमा तो था ही नही कभी कभी रामलीला, तो कभी कठपुतली वाला, कभी कभी जादू के खेल वाला मदारी ओर कभी साल दो साल मे एक बार सर्कस वाले आते थे हर खेल का कई कई बार  मज़ा लेते थे.... क्यूंकी सुंदर सुंदर, चुस्त चुस्त लड़कियाँ रंग बिरंगी कपड़ों मे मस्त मस्त खेल दिखाती थी ओर खेल के अंत मे मुस्कुरा कर अभिवादन करती थी मुझे लगता था वो सिर्फ़ मुझे ही मुस्कान दे रही है| वाह क्या आनंद की अनुभूति थी.... सोचता हूँ बचपन के दिनो की वो नासमझ ओर अज्ञानता भी कितनी खूबसूरत थी| जाने कहाँ गये वो दिन|
  • जिस स्कूल मे पढ़ता था उसकी इमारत भी बिक गयी नयी इमारतों मे स्कूल ओर कॉलेज खुल गये| जिस कारखाने मे मेरे पिता काम करते थे वो पूरा का पूरा धराशाही होगया अब वहाँ कॉलोनी है|
  • आज मेरे पास गाड़ी है, अपना मकान है, फोन है, नौकर-चाकर हैं, जीवन की सभी सुख सुविधाएँ ओर ज़रूरी उपलब्धियाँ हैं| पर वो कुछ भी अब मेरे पास नहीं है जो स्कूल के दिनो मे मेरे पास था| मैं खुश हूँ क्यूंकी मैं स्वीकार करता हूँ कि परिवर्तन ही संसार का नियम है ओर परिवर्तन ही जीवन है|


ठाकोर जोशी
11 February 2016


Tuesday, February 9, 2016

चंगु - मंगू और टीवी सीरियल (व्यंग)

चंगु - मंगू और टीवी सीरियल (व्यंग)


चंगु और मंगू एक छोटेसे गाँव में रहते थे ! खेत में मजूरी करते थे ! पढ़े लिखे नहीं थे ! गरीबी और महंगाई की मार से परेशां थे ! एक दिन उन्हों ने आपस में चर्चा की कि इन परेशानियों का हल कैसे लाया जाय ! इस चर्चा का ब्यौरा निम्न लिखित है !

·         चंगु --- यार मंगू बड़ी परेशानी है, एक तो हम बेकार है- सिर्फ मजूरी कर के पेट पालते हैं-- तिसपर महगाई इतनी बढ़ गई है की पूरा ही नहीं होता- दुखी हो गया हूँ यार !
·         मंगू --- बात तो तेरी बराबर है -- पर दुखी होने से कोई काम थोडेही चलता है -- कुछ कुछ करना तो पडेगा -- और करना भी चाहिए ! मैं भी तो बेकार ही हूँ, मैं भी मजूरी करता हूँ !
·         चंगु --- पर यार तेरी बात सोला आने सच है, कुछ करना चाहिए -- पर हम तो अनपढ़ गंवार हैं कर भी क्या सकते हैं ? तू ही कुछ आईडीया बता !
·         मंगू --- मैं तो सात क्लास फ़ैल हूँ -- पढ़ा लिखा हूँ -- हिंदी लिखना जानता हूँ -- चलो मिल कर टीवी सिरिअल की कहानी बनाते हैं ?
·         चंगु --- क्या टीवी सीरियल? हमारे पास इतनी नोलेज कहाँ है ?
·         मंगू --- बड़ी बुरी आदत है तेरी -- बात काटता है -- अरे हम कहानी लिखेंगे और टीवी वालों को बेचेंगे! सीरियल की कहानी में कोई नोलेज की जरूरत थोड़े ही है--कोई भी कर सकता है ये तो!
·         चंगु -- ओके चल बता क्या प्लान है तेरा?
·         मंगू देख बेसिक कास्ट --- एक हीरो / एक हिरोइन / हिरोइन की सहेलियां / हिरोइन के माँ बाप / हीरो के दोस्त हीरो के माँ बाप / एक विलेन और विलेन की गुंडा जमात / ये तो हो गई बेसिक कास्ट |
·         फिर सपोर्ट में पुलिस वाले / कोर्ट कचहरी वाले वकील, जज / मीडिया के पत्रकार इत्यादि ! इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए ! अच्छी खासी महीने से दो साल तक चलने वाली सीरीयल बन सकती है | इस से अधिक चलने वाली बनानी हो तो कास्ट में जंगली जानवर घुसालो ! ख़ास कर के गाँव के सपेरे से मिलकर कुछ सांप सलिटे ईकठ्ठा कर लो और कास्ट में डालो ! साथ साथ में भूत प्रेत और डायन इत्यादि डालो! लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए जंतर - मंतर - जादू - टोना - झाड- फूंक इत्यादि अति आवश्यक होता है ! इसमें चूक नहीं होनी चाहिए वर्ना अछि - खासी कहानी कि रेड पिट जाती है और मन वांछित टी-आर-पी नहीं मिल पाती !
·         चंगु --- यार बड़ी माकूल बात कही है तुने ! कुछ मैं भी आइडिया दूं?
·         मंगू --- हाँ हाँ बोल ना |
·         चंगु --- यार जंतर - मंतर - जादू - टोना - झाड- फूंक इत्यादि के साथ साथ हमे मदारी, तांत्रिक ओर अघोरियों की ज़रूरत भी तो पड़ेगी वरना कहानी खीचेगी कैसे?
·         मंगू --- अरे मेरे यार क्या माकूल बात कही है तूने भई वाह मज़ा आएगा| तब तो ये भी करना ही पड़ेगा! इन सब  से ख़ास कर के आज के पढ़े लिखे कहलानेवाले वर्ग के लोग बहुत चाव से देखते हैं और भंगार से भंगार सीरियल कि टी-आर-पी भी तगड़ी रहती है ! -- हम बेपढ़े गंवार तो इन चीजों में विशवास अब कहाँ करते हैं -- जमाने साथ हम तो कितने बदल गए -- पर पढ़े लिखे लोग अभी भी वहीँ के वहीँ हैं ! चलो भगवान् का नाम ले कर हम लोग नए काम का श्रीगणेश करे ! काम शुरूं करें |

·         चंगु --- ये तो शुरूवात है, आगे आगे देखिए होता है क्या ....


ठाकोर जोशी